शिमला: कमाई और खर्चों के बीच साल दर साल बढ़ रहे अंतर और घाटे को कम करने के लिए हिमाचल सरकार अब अनुदान के बजाय केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी पर लडऩे जा रही है। 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें अगले वित्त वर्ष से लागू होनी हैं और वित्त आयोग अपनी रिपोर्ट जुलाई या अगस्त महीने में फाइनल कर भारत सरकार को दे सकता है। इसलिए राज्य सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अगले महीने फायनांस कमीशन के सामने एडिशनल मेमोरेंडम के साथ जा रहे हैं। इससे पहले वित्त आयोग की शिमला दौरे के दौरान 25 जून, 2024 को भी राज्य सरकार ने एक मेमोरेंडम दिया था, लेकिन अब केंद्रीय करों में राज्यों के हिस्सेदारी के फार्मूले को चुनौती दी जा रही है। इसके लिए तीन नए तर्क सामने रखे जा रहे हैं। केंद्र सरकार कुल टैक्स कलेक्शन का 40 फीसदी कॉमन पूल में डालकर राज्यों को वापस देती है। इसमें अभी हिमाचल को हिस्सेदारी 0.83 फीसदी के फार्मूले से मिलती है। हिमाचल इस प्रतिशतता को बढ़ाना चाह रहा है। राज्य के बजट में अभी करीब 7000 करोड़ का घाटा है , जिसे न तो अपना राजस्व बढ़ाकर पूरा किया जा सकता है, न ही खर्चे कम कर। हिमाचल सरकार वित्त आयोग के सामने राज्य के फोरेस्ट कवर पर एक रिपोर्ट रखने जा रही है। यह रिपोर्ट इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट भोपाल से तैयार करवाई गई है।
यह रिपोर्ट कहती है कि हिमाचल अपने जंगल बचाकर देश को सालाना 90000 करोड़ की इकोलॉजिकल सेवाएं देता है। राज्य तर्क दे रहा है कि सिर्फ फोरेस्ट कवर वाले जंगल ही वित्त आयोग रिपोर्ट में ले रहा है, जबकि स्नोबाउंड एरिया के खाली पहाड़ों को इग्नोर किया जा रहा है, जबकि जंगल और नदियों के लिए स्नोबाउंड पर्वत जरूरी हैं। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि अच्छे काम की सजा नहीं मिलनी चाहिए। यदि हिमाचल में प्रति व्यक्ति आय या स्वास्थ्य और शिक्षा के इंडिकेटर देश के अन्य राज्यों से बेहतर हैं, तो उसका नुकसान नहीं होना चाहिए। इसीलिए वित्त आयोग अपनी रिपोर्ट में संतुलन बनाए। तीसरा तर्क राजस्व घाटा अनुदान को लेकर है। अगले महीने फायनांस कमीशन से बैठक के लिए मुख्यमंत्री इस रिपोर्ट के साथ दिल्ली जा सकते हैं। हिमाचल के लिए नए वित्त आयोग की रिपोर्ट अपने अनुसार होना बेहद जरूरी है। नहीं तो अगले पांच साल का सफर और मुश्किल हो जाएगा। वित्त आयोग के सामने एडिशनल मेमोरेंडम रखने के लिए मुख्यमंत्री सुक्खू ने शीर्ष अधिकारियों की एक अलग कमेटी बना रखी है। इस कमेटी को मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार रामसुभाग सिंह देख रहे हैं, जबकि अतिरिक्त मुख्य सचिव फोरेस्ट कमलेश कुमार पंत, प्रधान सचिव वित्त देवेश कुमार, एडवाइजर प्लानिंग बसु सूद और मुख्यमंत्री के सचिव राकेश कंवर भी इस कमेटी में हैं। यह कमेटी सीधे तौर पर सीएम को रिपोर्ट करती है।
इसलिए जरूरी है टैक्स में ज्यादा हिस्सेदारी
पिछले दो साल से हिमाचल का कुल बजट 58000 करोड़ के आसपास है। इसमें अपनी कमाई टैक्स रिवेन्यू में 14 से 15000 करोड़ और नॉन टैक्स रिवेन्यू में 4000 करोड़ है। केंद्रीय करों में हिस्सेदारी और ग्रांट मिला दें, तो कुल राजस्व 43000 करोड़ है। खर्चो की बात करें तो सैलरी और पेंशन के 27000 करोड़ को मिलाकर 60000 करोड़ चाहिए। लोन सभी तरह के स्रोतों से लेने के बाद भी 7000 करोड़ का अंतर बजट में है। इसके लिए राज्य के पास तीन विकल्प है। अपने संसाधन बढ़ाएं, खर्च कम करें या केंद्र से मदद ज्यादा मिले। तीसरे विकल्प से ही यह गैप पूरा हो सकता है।