चंडीगढ़: राजनीति में आमतौर पर कहा जाता है कि कोई किसी का सगा नहीं होता, हर कोई अपना फायदा और सुविधा देखकर ही फैसले लेता है। देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव की तैयारियां चरम पर हैं, इसके साथ ही दलबदल का दौर भी जारी है। पार्टियों की ओर से जीत हासिल करने के लिए तरह-तरह के जोड़-तोड़ किए जा रहे हैं। ऐसे कई नेता हैं जिन्हें पार्टी बदलने से फायदा हुआ और उन्हें ऊंचे पद मिले। पंजाब की राजनीति में कुछ ऐसे नाम भी हैं, जो पहले तो काफी मशहूर थे, लेकिन पार्टी बदलने के बाद राजनीति से गुमनाम हो गए । आइए आज ऐसे ही कुछ लोकप्रिय नामों पर एक नजर डालते हैं:
1. नवजोत सिंह सिद्धू
क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद राजनीति की दुनिया में कदम रखने वाले नवजोत सिंह सिद्धू अक्सर अपने बेबाक भाषणों और बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते थे। लेकिन इस लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने क्रिकेट कमेंट्री में वापसी का फैसला किया। इसी समय वह आई.पी.एल. में कमेंट्री कर रहे हैं राजनीति की शुरूआत में सिद्धू काफी सफल रहे थे। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रघुनंदन लाल भाटिया को भी हराया। 2014 तक वे बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में पहले नंबर पर शामिल थे। फिर वह कांग्रेस में आए और उन्हें कैबिनेट मंत्री और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से नवाजा गया, लेकिन अब पार्टी के ही नेताओं से मनमुटाव के कारण उन्होंने खुद को राजनीति से दूर कर लिया है।
2. मनप्रीत बादल
मनप्रीत बादल एक समय शिरोमणि अकाली दल का बड़ा नाम था। पार्टी ने उन्हें वित्त मंत्री भी बनाया, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के लालच ने उनकी गाड़ी को पटरी से उतार दिया। उन्होंने सबसे पहले अपनी पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब बनाई। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए और जब वहां भी सरकार बनने पर उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। अब वह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं, लेकिन राजनीतिक गलियारों से उनका नाम गायब है।
3. बीर दविंदर सिंह
पार्टियां बदलने के बारे में बीर दविंदर सिंह का एक किस्सा काफी मशहूर है। दरअसल, उस समय बीर दविंदर सिंह शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस, बीएसपी और पी.पी.पी. और आम आदमी पार्टी के संपर्क में थे। एक दिन घर की सफाई करते समय उनकी बहू को स्टोर से अकाली दल, बीएसपी, कांग्रेस और पीपीपी पार्टीी के झंडे व अन्य सामान निकला तो उन्होंने पूछा कि किस पार्टी का सामान रखना है। उन्होंने हंसते हुए कहा कि सारा कुछ पड़ा रहने दो, क्या पता किस पार्टी में दाव लग जाए। संसदीय मामलों में वे एक अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ वह एक अच्छे प्रवक्ता भी थे लेकिन वे कभी किसी उच्च राजनीतिक पद तक नहीं पहुंच सके। एक के बाद एक पार्टियां बदलने के बावजूद वह कोई बड़ा पद पाने में सफल नहीं हो सके।
4. जगमीत बराड़
जगमीत बराड़ को आवाज़-ए-कौम के नाम से जाना जाता रहा है। साल 1992 में जब वे संसद पहुंचे और अपना पहला भाषण दिया तो उसमें उन्होंने पंजाब की समस्याओं के बारे में बताया। उनका भाषण सुनकर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी काफी प्रभावित हुए और अपनी सीट से उठकर उन्हें बधाई देने पहुंचे। जगमीत बराड़ कांग्रेस से कांग्रेस (तिवारी), फिर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल में गए। उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सुखबीर बादल को हराया भी था, लेकिन इसके बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन ऐसी खोई, जिसकी तलाश में वह आज भी हैं।