कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 2025 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है। उनके इस कदम ने न सिर्फ कनाडा की राजनीति को प्रभावित किया है, बल्कि भारत और कनाडा के बीच के रिश्तों पर भी संभावित असर डाला है। ट्रूडो का इस्तीफा कनाडा के लिए एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि वे पिछले नौ सालों से देश की कमान संभाल रहे थे। उनके कार्यकाल में भारतीय मूल के नागरिकों के बीच खालिस्तान आंदोलन को लेकर काफी तनाव बना रहा, जो भारतीय सरकार के लिए एक गंभीर चिंता का विषय रहा है। ट्रूडो के इस्तीफे के बाद अब यह सवाल उठता है कि कनाडा में सत्ता का नया चेहरा कौन होगा और क्या इस बदलाव से भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार होगा?
ट्रूडो का प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा
जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री बनने के बाद से कनाडा में उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक फैसलों पर चर्चा होती रही है। वे लिबरल पार्टी के नेता भी रहे हैं और कनाडा की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा रहे हैं। हालांकि, उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत और कनाडा के रिश्तों में काफी खटास आई, खासकर खालिस्तान आंदोलन को लेकर। भारत ने कई बार कनाडा सरकार से इस मुद्दे पर कड़ा विरोध जताया, लेकिन ट्रूडो ने इस आंदोलन के समर्थकों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जो कि भारत के लिए चिंता का विषय था। अब जब ट्रूडो ने इस्तीफा देने का ऐलान किया है, तो सवाल उठता है कि उनके बाद कौन प्रधानमंत्री बनेगा और क्या उनके इस्तीफे से भारत-कनाडा के रिश्तों में सुधार हो सकता है?
कनाडा में अगले प्रधानमंत्री के लिए संभावित दावेदार
कनाडा में ट्रूडो के इस्तीफे के बाद अब प्रधानमंत्री पद के लिए चार प्रमुख नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। ये सभी नेता लिबरल पार्टी के अंदर से हैं और इनकी संभावनाएं पार्टी की आंतरिक चुनाव प्रक्रिया पर निर्भर करेंगी। इन नेताओं में से कोई भी एक प्रधानमंत्री बन सकता है, और यह पदभार संभालने वाला व्यक्ति भारत और कनाडा के रिश्तों में एक नई दिशा तय कर सकता है।
1. क्रिस्टिया फ्रीलैंड
क्रिस्टिया फ्रीलैंड कनाडा की डिप्टी पीएम रह चुकी हैं और ट्रूडो के करीबी सहयोगियों में गिनी जाती हैं। उनकी छवि एक सशक्त और सक्षम नेता के रूप में बन चुकी है, और कई सांसद उन्हें ट्रूडो के उत्तराधिकारी के रूप में देख रहे हैं। उनके प्रधानमंत्री बनने से लिबरल पार्टी को मजबूत नेतृत्व मिल सकता है। हालांकि, ट्रूडो के समर्थक होने के कारण उनका भारत के प्रति रुख पहले जैसा ही रह सकता है, लेकिन भारत के प्रति किसी कठोर नीति की उम्मीद भी की जा सकती है।
2. डोमिनिक लेब्लांक
डोमिनिक लेब्लांक कनाडा के वित्त मंत्री रहे हैं और ट्रूडो के करीबी मित्रों में गिने जाते हैं। हालांकि उनके पीएम बनने की संभावना भी जताई जा रही है, लेकिन उनके भारत के प्रति रुख पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं हैं। फिर भी, अगर वे प्रधानमंत्री बनते हैं, तो कनाडा में आर्थिक नीतियों में बदलाव देखने को मिल सकता है।
3. मार्क कार्नी
मार्क कार्नी कनाडा के एक प्रमुख अर्थशास्त्री हैं और लिबरल पार्टी के आर्थिक सलाहकार रहे हैं। यदि वे प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उनकी प्राथमिकता देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने पर होगी। उनके नेतृत्व में कनाडा के भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों में सुधार हो सकता है, क्योंकि वे भारतीय बाजार में निवेश और आर्थिक सहयोग को लेकर सकारात्मक नजरिया रखते हैं।
4. मेलानी जोली
मेलानी जोली, जो ट्रूडो सरकार में विदेश मंत्री रही हैं, भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं। उनके पास अंतरराष्ट्रीय संबंधों का लंबा अनुभव है और कनाडा के विदेश नीति के अहम हिस्से रही हैं। उनका दृष्टिकोण भारत और कनाडा के रिश्तों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर यदि वे विदेश नीति में कोई नया दृष्टिकोण अपनाती हैं।
खालिस्तान आंदोलन पर क्या असर पड़ेगा?
ट्रूडो के कार्यकाल में कनाडा में खालिस्तान समर्थक आंदोलन को लेकर भारत और कनाडा के बीच कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई। भारतीय सरकार ने कई बार कनाडा से आग्रह किया था कि वह खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई करे, लेकिन ट्रूडो सरकार ने इस मामले में हमेशा नरम रुख अपनाया। ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा के सांसदों और राजनेताओं ने अक्सर इस आंदोलन के प्रति सहानुभूति दिखाई। खासकर भारतीय आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में कनाडा ने भारत पर आरोप लगाए थे, जो भारत के लिए एक बड़ा विवाद था। ट्रूडो का यह रवैया भारत के साथ रिश्तों में खटास का कारण बना। अगर कनाडा में कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार बनती है, तो खालिस्तान आंदोलन पर कुछ हद तक ब्रेक लग सकता है। कंजर्वेटिव पार्टी के नेता इस आंदोलन को गंभीरता से लेते हैं और इसे कनाडा की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं। हालांकि, इस आंदोलन को पूरी तरह समाप्त करना मुश्किल होगा, क्योंकि कनाडा में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी संख्या है और वे खालिस्तान आंदोलन के समर्थक रहे हैं।
पियरे पोलीवरे और भारत-कनाडा रिश्ते
कनाडा के विपक्षी नेता पियरे पोलीवरे का नाम प्रधानमंत्री पद की दौड़ में प्रमुख है। पियरे पोलीवरे ने ट्रूडो के आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा था कि भारत पर आरोप लगाना गलत था और यह पूरी तरह से झूठ था। उनका यह बयान भारत में काफी सराहा गया था। अगर पियरे पोलीवरे प्रधानमंत्री बनते हैं, तो यह भारत के लिए बहुत अच्छा संकेत हो सकता है। वे भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं और दोनों देशों के बीच व्यापार और सामरिक रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में काम कर सकते हैं।
भारत और कनाडा के रिश्तों पर असर
अगर कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में आती है, तो भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार होने की संभावना है। कंजर्वेटिव पार्टी के नेताओं ने हमेशा भारत के साथ सामरिक और व्यापारिक रिश्तों को बढ़ावा देने की बात की है। साथ ही, खालिस्तान समर्थक तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। इस स्थिति में भारत और कनाडा के रिश्तों में नई ऊर्जा और दिशा मिल सकती है।जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा कनाडा की राजनीति में एक बड़ा मोड़ है। उनके बाद जिन नामों पर प्रधानमंत्री बनने का दबाव है, वे भारत और कनाडा के रिश्तों को न केवल प्रभावित करेंगे, बल्कि खालिस्तान आंदोलन पर भी असर डाल सकते हैं। कंजर्वेटिव पार्टी के सत्ता में आने से भारत के साथ कनाडा के रिश्तों में सुधार की उम्मीद जताई जा सकती है। अब यह देखना होगा कि कनाडा का अगला प्रधानमंत्री किस प्रकार की नीतियां अपनाता है और क्या दोनों देशों के रिश्ते फिर से सामान्य हो सकते हैं।