भारत में गन्ने की पैदावार पर बदलते मौसम का गंभीर प्रभाव पड़ा है। सूखे और अतिवृष्टि जैसी स्थितियों ने किसानों और चीनी उद्योग के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। इस बार चीनी उत्पादन खपत से कम हो सकता है, जो आठ वर्षों में पहली बार होगा। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश भारत में यह संकट निर्यात पर रोक लगाने तक पहुंच सकता है, जिससे वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ने की संभावना है।
उत्पादन में कमी की क्या है वजह?
वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बी.बी. थॉम्बरे ने बताया, 'गर्मियों के महीनों में पानी की कमी के कारण गन्ने की फसल पर लंबे समय तक दबाव रहा।' जब मानसून का मौसम शुरू हुआ तो अत्यधिक वर्षा और सीमित धूप के कारण भी फसल की बढ़ोतरी पर प्रतिकूल असर पड़ा। थॉम्बरे ने कहा कि प्रतिकूल मौसम ने गन्ने की पैदावार में प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन की कमी की है।
महाराष्ट्र और पड़ोसी कर्नाटक मिलकर भारत की लगभग आधी चीनी का उत्पादन करते हैं। इनमें 2023 में औसत से कम वर्षा हुई। इससे जलाशयों का स्तर कम हो गया। महाराष्ट्र के सोलापुर में पांच एकड़ जमीन पर गन्ने की खेती करने वाले श्रीकांत इंगले कहते हैं, 'आमतौर पर हम एक हेक्टेयर जमीन से 120 से 130 टन गन्ना काटते हैं, लेकिन इस साल हमारी सारी कोशिशों के बावजूद पैदावार घटकर 80 टन रह गई है।'
निर्यात की संभावनाओं पर लगा ग्रहण
देश के प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में सूखे ने फसल को प्रभावित नहीं किया। हालांकि, राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य में लाल सड़न रोग से बागान प्रभावित हुए, जिससे गन्ने की पैदावार कम हो गई। अधिकारी ने कहा, 'बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए हम किसानों को गन्ने की नई किस्मों को अपनाने की सलाह दे रहे हैं।'
व्यापारिक घराने के प्रमुख ने कहा कि उत्पादन अनुमान में कमी के कारण मौजूदा सीजन में किसी भी निर्यात की संभावना समाप्त हो गई है। चीनी उद्योग 2 करोड़ टन निर्यात चाहता है। जबकि सरकार का कहना है कि अगर इथेनॉल की जरूरतें पूरी होने के बाद कोई अधिशेष रहता है तो वह सीमित निर्यात की अनुमति दे सकती है।
कुल मिलाकर, मौसम की मार ने गन्ने की पैदावार पर बुरा असर डाला है। इससे चीनी उत्पादन में कमी और निर्यात की संभावनाओं पर सवालिया निशान लग गया है। किसानों की चिंता बढ़ गई है और सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।