27 जनवरी को फ्लोरिडा के डोरल में आयोजित 2025 रिपब्लिकन इश्यूज कॉन्फ्रेंस में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आयकर खत्म करने और इसे विदेशी वस्तुओं और नागरिकों पर लगाए गए टैरिफ (शुल्क) से बदलने का प्रस्ताव रखा। ट्रंप ने इस बदलाव को अमेरिका की आर्थिक ताकत को बढ़ाने के लिए जरूरी बताया और कहा कि टैरिफ प्रणाली के जरिए अमेरिका फिर से समृद्ध हो सकता है, जैसा कि पहले हुआ करता था।
ट्रंप का तर्क, आयकर से ज्यादा फायदा टैरिफ में है
ट्रंप ने कहा, “अमेरिका को उस प्रणाली में लौटने की जरूरत है, जिसने हमें अमीर और शक्तिशाली बनाया। 1913 से पहले अमेरिका में कोई आयकर नहीं था और हम टैरिफ के जरिए बहुत समृद्ध हुए थे।” उन्होंने 1870-1913 के बीच के समय का उदाहरण दिया, जब टैरिफ के कारण अमेरिका ने अपनी सबसे अमीर अवधि देखी। ट्रंप के अनुसार, विदेशी उत्पादों पर शुल्क लगाकर अमेरिका अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकता है।
ट्रेजरी सेक्रेटरी का भी समर्थन
अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने भी ट्रंप के विचारों का समर्थन किया और कहा कि वह आयकर खत्म करने, इसे एक उपभोग कर से बदलने और सोने पर आधारित मुद्रा प्रणाली अपनाने के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा, "हम कर्ज को मिटाएंगे और नई तकनीकों को बढ़ावा देंगे, जिससे समृद्ध भविष्य की शुरुआत होगी।"
आर्थिक विशेषज्ञों की चिंता
हालांकि ट्रंप और बेसेंट का यह विचार आकर्षक लगता है, लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि टैरिफ एक अच्छा विकल्प नहीं है। उनका कहना है कि टैरिफ वस्तुओं की कीमत बढ़ाते हैं, जिससे आम आदमी को अधिक भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा, टैरिफ से विदेशी देशों से अमेरिका में आयात होने वाली वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है, जो अंत में उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाती है।
आयकर के बिना सरकार को कैसे मिलेगा पैसा?
ट्रंप का यह प्रस्ताव सवाल खड़ा करता है कि यदि आयकर खत्म कर दिया जाए तो सरकार को पैसे की कमी कैसे पूरी होगी। सरकार का अधिकांश राजस्व आयकर से आता है और इसे खत्म करने से राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है। ऐसे में टैरिफ से मिलने वाली रकम कितनी प्रभावी होगी, यह बड़ा सवाल है।