भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के संभावित सुधारों को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। भारत ने स्पष्ट कहा है कि नयी सुरक्षा परिषद में धर्म और आस्था जैसे नए मानदंडों को प्रतिनिधित्व का आधार बनाने का कोई औचित्य नहीं है। भारत ने इसे क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की स्वीकृत अवधारणा के खिलाफ बताया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी. हरीश ने 'भविष्य की परिषद का आकार और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व' विषय पर अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) में कहा कि "जो देश नियम आधारित प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं, वे UNSC सुधारों की प्रगति रोकना चाहते हैं।"
राजदूत ने दो टूक कहा कि "धर्म और आस्था जैसे कारकों को आधार बनाना क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की मूल अवधारणा को कमजोर करता है, जो अब तक वैश्विक प्रतिनिधित्व का स्वीकार्य आधार रहा है।"भारत ने यह भी दोहराया कि कोई भी ऐसा मॉडल जो केवल अस्थायी सदस्यता का विस्तार करता है और स्थायी सीटों की संख्या नहीं बढ़ाता, वह वास्तविक सुधार नहीं ला सकता। भारत ने ज़ोर देकर कहा- "सिर्फ दिखावटी सुधार नहीं, जवाबदेही और प्रभावी कामकाज वाली नई परिषद चाहिए।"
इससे पहले भारत ने G-4 देशों ब्राज़ील, जर्मनी, जापान और भारत की ओर से संयुक्त बयान पढ़ा। बयान में कहा गया कि UNSC की वर्तमान संरचना "एक पुराने युग की प्रतिनिधि है, जिसे अब बदलना ज़रूरी है।" G-4 ने कहा कि वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के हिसाब से परिषद की रूपरेखा में बदलाव ज़रूरी है, ताकि यह 21वीं सदी के वैश्विक संकटों से प्रभावी ढंग से निपट सके। भारत पिछली बार 2021-2022 में UNSC का गैर-स्थायी सदस्य था। वर्तमान में सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य (P5) हैं अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन और 10 गैर-स्थायी सदस्य हैं जिन्हें दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है।