हाल ही में सामने आए दस्तावेजों ने कनाडा की राजनीतिक स्थिरता और खालिस्तानी तत्वों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता के बीच गहरे और चिंताजनक संबंधों का खुलासा किया है। पहली बार ठोस साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने भारत के अनुरोधों को अनदेखा क्यों किया है। भारत लंबे समय से नामित खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर और उसके सहयोगियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा था, परंतु कनाडा में इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। यह महज राजनीतिक अनदेखी नहीं है, बल्कि वित्तीय और राजनीतिक मजबूरी की वजह से लिया गया एक सोच-समझा फैसला है।
दस्तावेजों से यह सामने आया है कि निज्जर और उसके सहयोगियों ने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के नेता जगमीत सिंह ढलिवाल को बड़े पैमाने पर धनराशि पहुंचाई है। ढलिवाल की एनडीपी, ट्रूडो की सरकार की बहुमत को सुनिश्चित करने वाली पार्टी है, जो कि लिबरल पार्टी के लिए सत्ता में बने रहने के लिए आवश्यक है। इस स्थिति ने कनाडा की सत्ताधारी गठबंधन को एक अस्थिर स्थिति में डाल दिया है, जिसमें उसकी राजनीतिक स्थिरता खालिस्तानी हितों पर निर्भर होती जा रही है।इस खतरनाक गठजोड़ ने ट्रूडो के भारत विरोधी हालिया राजनयिक रुख पर भी नई रोशनी डाली है।
जब ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत की कथित संलिप्तता का आरोप लगाया था, तो यह महज शब्दों का खेल नहीं था, बल्कि वे एक ऐसे नेटवर्क को बचाने का प्रयास कर रहे थे जिसने उनकी सरकार को वित्तीय सहयोग दिया है। वहीं, कनाडा में हिंदू समुदाय, जो अपने को अलग-थलग महसूस करने लगा है, आशंकित है कि कहीं उनकी सुरक्षा राजनीति के नाम पर बलिदान न कर दी जाए।कनाडा में खालिस्तानी तत्वों का राजनीतिक में प्रवेश कोई नई चिंता नहीं है, लेकिन इन दस्तावेजों से पता चलता है कि अब यह मुद्दा कितना गहराई से जड़ पकड़ चुका है। खालिस्तानी समर्थकों ने लंबे समय से कनाडा में शरण पाई है, लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने सरकार के ऊंचे पदों तक अपनी पहुंच बना ली है। इस गठजोड़ ने कनाडाई अधिकारियों के हाथ बांध दिए हैं, जिससे यह संभावना कम ही है कि खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की जाएगी।
कनाडा-भारत संबंधों के भविष्य पर पड़ेगा क्या असर ?
कनाडा के राजनीतिक अभिजात वर्ग और खालिस्तानी वित्तीय समर्थकों के बीच के ये संबंध दोनों देशों के बीच एक गहरी खाई उत्पन्न कर रहे हैं। भारत का धैर्य अब जवाब देने लगा है, और यह सोचना कठिन है कि कनाडा की नीति में कोई बुनियादी बदलाव के बिना संबंधों में सुधार हो सकेगा। परंतु, जब तक खालिस्तानी धन ओटावा में राजनीतिक मशीनरी को चलता रहेगा, तब तक इस बदलाव की संभावना अत्यंत कम है। ये खुलासे केवल ट्रूडो की सरकार पर सवाल नहीं उठाते, बल्कि ये पूरे कनाडाई समाज के लिए एक चेतावनी हैं। राजनीतिक गठबंधनों के नाम पर अतिवादी तत्वों को संरक्षण देना देश की अखंडता और सुरक्षा को कमजोर कर रहा है। कनाडाई जनता को अब कठिन सवाल पूछने का समय आ गया है कि राजनीतिक अस्तित्व की कीमत कितनी चुकानी पड़ेगी, और इसका बोझ कौन उठाएगा।सच्चाई सामने है, और वह चिंताजनक है। कनाडाई जनता को पारदर्शिता और जवाबदेही चाहिए, न कि एक ऐसी सरकार जो उन लोगों के इशारों पर काम करे जिनके उद्देश्य शांति और स्थिरता के खिलाफ हैं। आखिर कब तक कनाडा अनदेखा कर सकता है?