सर्दियों के मौसम को आमतौर पर सेहत के लिहाज़ से सुहाना माना जाता है, लेकिन इस ऋतु में लापरवाहियां बरतना उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर), दिल का दौरा (हार्ट अटैक) और स्ट्रोक (ब्रेन अटैक या लक़वा) जैसी गंभीर समस्याओं के जोखिम को बढ़ा देता है। इसी तरह सर्दियों में एलर्जिक राइनाइटिस, साइनोसाइटिस, दमा, जोड़ों और कमर में दर्द की समस्याएं भी सिर उठाती हैं। हालांकि कुछ सावधानियां बरतकर आप इन समस्याओं को परास्त करते हुए स्वस्थ बने रह सकते हैं।
ठंड में इसलिए बढ़ते हैं मामले
जब धमनियों की आंतरिक दीवार पर रक्त संचार का दबाव 140/90 के पार पहुंच जाता है तो यह स्थिति उच्च रक्तचाप कहलाती है। हार्ट एसोसिएशन (आईएचए) और इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन (आईएसए) के अनुसार उच्च रक्तचाप हार्ट अटैक और स्ट्रोक का एक प्रमुख कारण है। इनके अनुसार गर्मियों की तुलना में सर्दियों में दिल के दौरों के मामले लगभग 26 फ़ीसदी और स्ट्रोक के मामले 32 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाते हैं।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार सर्दियों में अन्य मौसमों की तुलना में रक्त में कहीं ज़्यादा गाढ़ापन आ जाता है, जिससे थक्का (क्लाॅट) बनने लगता है। हार्ट अटैक और स्ट्रोक के ज़्यादातर मामले रक्त के थक्कों के बनने से होते हैं। ऐसे थक्के हृदय और मस्तिष्क की धमनियों या रक्त नलिकाओं के मार्ग को बाधित करते हैं, जो कालांतर में दिल के दौरे और स्ट्रोक का कारण बनते हैं। तापमान में गिरावट का दुष्प्रभाव हृदय की धमनियों (कोरोनरी आर्टरीज़) पर भी पड़ता है, जिस कारण वे सिकुड़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में रक्त संचार के दौरान धमनियों की आंतरिक दीवारों पर रक्त का दबाव ज्यादा पड़ता है। यह स्थिति उच्च रक्तचाप को बढ़ाती है।
जाड़े में जारी रहें सावधानियां
- सर्दियों में आलस्य के कारण अनेक लोग अपने व्यायाम कार्यक्रम को स्थगित कर कंबल-रज़ाई में लिपटे रहना चाहते हैं, या फिर व्यायाम या शारीरिक परिश्रम के लिए समुचित समय नहीं निकालते। यह प्रवृत्ति सेहत के लिए ठीक नहीं है।
- ठंड के मौसम में आमतौर पर लोग अत्यधिक मिर्च-मसालेदार युक्त चटपटा और चिकनाईयुक्त खानपान पसंद करते हैं और भूख से अधिक खाते हैं। यह स्थिति कालांतर में मोटापा बढ़ाती है जिससे कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) का जोखिम बढ़ता है।
- सर्दियों लगने से स्वयं को बचाएं। पर्याप्त ऊनी कपड़े पहनकर ही घर से बाहर निकलें।
- जो लोग वृद्ध हैं या फिर जिन्हें पहले से ही उच्च रक्तचाप या हृदय रोग है, उन्हें सर्दियों में धूप निकलने के बाद ही टहलने जाना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि सुबह के वक़्त अत्यधिक ठंड होने के कारण धमनियों के सिकुड़ने का ख़तरा ज़्यादा रहता है और यह स्थिति हार्ट अटैक या फिर स्ट्रोक का कारण बन सकती है।
- उच्च रक्तचाप के रोगी नमक पर नियंत्रण रखें। सर्दियों में पसीना कम निकलने के कारण शरीर में नमक की मात्रा बढ़कर रक्तचाप को प्रभावित कर सकती है। प्रतिदिन अपने भोजन में विभिन्न खाद्य पदार्थों के ज़रिए 5 ग्राम (आधा छोटा चम्मच) से अधिक नमक का सेवन न करें।
सर्दियां और हाइपोथर्मिया
सर्दियों में बच्चों, बुज़ुर्गों, हृदय और मधुमेह रोगियों में हाइपोथर्मिया (शरीर का तापमान कम हो जाना) के मामले बढ़ जाते हैं। आमतौर पर शरीर का सामान्य तापमान 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट (37 डिग्री सेल्सियस) होता है, लेकिन जब यह तापमान सामान्य से 3 डिग्री सेल्सियस कम होने लगे, तो यह स्थिति हाइपोथर्मिया कहलाती है।
ठंड में पर्याप्त ऊनी कपड़े न पहनने, ठंडे माहौल में रहने या फिर किन्हीं कारणों से ठंडे पानी में रहने से यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। हाइपोथर्मिया के शुरुआती लक्षणों में कंपकंपी, कमज़ोरी और थकान महसूस होती है, लेकिन गंभीर स्थिति में सांस लेने में दिक़्क़त और बेहोश हो सकती है।
ध्यान दें....
- मरीज़ को हरसंभव तरीक़े से सर्दी से बचाएं।
- पीड़ित को रज़ाई या कंबल से अच्छी तरह से ढकें।
- शुरुआती दौर में ही डॉक्टर से संपर्क करें और उनके बताए सुझावों पर अमल करें।
दमे पर करें दमदार नियंत्रण
सर्दियों में दमे (अस्थमा) का प्रकोप बढ़ जाता है। सर्दी जु़काम-बुख़ार होने पर लापरवाही बरतने पर दमा के मामले बढ़ जाते हैं। श्वास नली में सूजन को दमा कहते हैं। दमा एक प्रकार की एलर्जी है। व्यक्ति को जिस वस्तु या माहौल से एलर्जी हो, उससे बचने का प्रयास करें। दमा में इनहेलेशन थैरेपी के नतीजे कारगर साबित हो रहे हैं, क्योंकि इनहेलर के ज़रिए दवा सीधे फेफड़े में पहुंचकर अतिशीघ्र असर करती है। डॉक्टर से परामर्श लेकर इनहेलर से दवा लें और उनके बताए सुझावों पर अमल करें।
जाड़े में एलर्जिक राइनाइटिस
मौसम बदलने पर और ख़ासकर सर्दियों में एलर्जिक राइनाइटिस का प्रकोप कुछ ज़्यादा बढ़ जाता है। हर आयु वर्ग का व्यक्ति इससे प्रभावित हो सकता है। इस मर्ज़ में नाक बंद होना और उसमें खुजली होना, सांस लेने में तकलीफ़, छींकें आना, कान बंद होना, आंखों में खुजली और गले में खराश आदि लक्षण सामने आते हैं। जिन चीज़ों से एलर्जी हो उनसे बचें। डॉक्टर से परामर्श लेकर दवाएं लें। नेज़ल स्प्रे से राहत मिलती है।
जोड़ों व रीढ़ की समस्याएं
जो लोग गठिया और रीढ़ की हड्डी की समस्याओं जैसे (सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस या फिर लंबर स्पॉन्डिलाइटिस) आदि से पीड़ित हैं, उनकी तकलीफ़ें सर्दियों में बढ़ जाती हैं। इसका कारण यह है कि ठंड में धमनियां सिकुड़ जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप जोड़ों में रक्त संचार की प्रक्रिया के सुचारु रूप से संचालित न होने से उनमें अकड़न और दर्द की समस्याएं बढ़ जाती हैं।
बेहतर यही रहेगा कि गठिया और रीढ़ की हड्डी की समस्याओं से पीड़ित लोग विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क कर उनके परामर्श पर अमल करें। फिज़ियोथैरेपिस्ट से सलाह लेकर अपनी उम्र और शारीरिक स्थिति के अनुसार व्यायाम करें। भोजन में कैल्शियम युक्त आहार जैसे दूध और इससे निर्मित उत्पादों- दही व मट्ठा आदि को वरीयता दें।
सुबह की धूप में लगभग आधे घंटे तक बैठें क्योंकि यह विटामिन डी का एक उम्दा कुदरती स्रोत है। विटामिन डी जोड़ों के दर्द और सूजन में राहत देने के अलावा कमर दर्द में भी लाभप्रद है। सर्दी से बचने के उपक्रम में अक्सर भंगिमा प्रभावित हो जाती है। अत: उठते-बैठते और चलते समय कमर को सीधा रखें। कंधे झुकाकर न चलें। रीढ़ (स्पाइन) से संबंधित समस्या है तो स्पाइन स्पेशलिस्ट से परामर्श लें, जो आपको लंबर बेल्ट या सर्वाइकल कॉलर पहनने का परामर्श दे सकते हैं। योगासन विशेषज्ञ से परामर्श लेकर जोड़ों और रीड की हड्डी से संबंधित व्यायाम करना लाभप्रद है।
साइनस इन्फेक्शन
जाड़े में साइनस इन्फेक्शन के मामले भी कुछ ज़्यादा बढ़ जाते हैं। नाक बंद होने या नाक बहने से मरीज़ को सांस लेने में समस्या होती है। रोगी को नाक, माथा और आंखों के आसपास दर्द महसूस होता है। इसके अलावा उसकी स्वाद परखने और किसी गंध को सूंघने की क्षमता भी कम हो जाती है। इन लक्षणों के सामने आने पर मरीज़ की स्थिति के अनुसार डॉक्टर एंटीबायोटिक्स देते हैं।